Monday 3 September 2012

ये मेरे प्यारे वतन

ये रंगीन फिजाए जिल मिल सितारों सी शाम हवाओ में लहेराती ठंडी लगता हे जेसे आज दिलको सुकून मिल रहा हे आकाश में चलते बादल को में अपने हाथोसे छू रहा हु में महेसुस कर सकता हु इन प्यारी वादियोमे में खुद को आज बहोत बेहतरीन महेसुस करता हु मनसे आवाज़ आतिहे हसमुख जरा उडले  इन हवाओ के   साथ जुमले ये घनेरी शाम इन्द्र धनुष के रंगोमे रंगी सुनहरी पल को अपनी आँखों में बसाकर में जिन्दगी के इन हसींन  पल को जीना चाहताहू
अपने वतन से कोशो दूर हु पर आज खुद को वतन में महेशुश करता हु ये नदिया पंछी  पवन के जुलो में किसी जिल किनारे दिलको ठंडक देने वाली मनोहर संध्या आज पुरे बहरोमे खिली हुई हे लगता हे इस कुदरती सानिध्य में हमेशा खुद को पाऊ
दोस्तों वैसे में गुजरात के एक  छोटा लेकिन सुन्दर  गाँव से बिलोंग करता हु अपनी मात्रु  भूमिकी मिटटी की  खुशबु हमेशा  अपने दिलमे महेशुश करता हु में जहा मेरा बचपन बिता हो वो गाँव की गलिया सड़के खेतो की  हरियाली अपनों का प्यार जगडा और महोब्बत मस्ती आज भी जब याद आजाती हे तो दिल को सुकून मिलता हे जिन्दगी की उल्जन में और परिवार की जिम्मेदारी और अपने फर्ज के लिए हर पल खड़े पग दोड़ता रहता हु कभी यहाँ कभी वंहा  ट्राफिक और भीड़ के बिच कभी कभी थकान शरीर को कमजोर कर देताहे मानशिक टूट जाता हु खुद को अकेला महेशुश करता हु लेकिन जब इस वक्त वतन की मिटटी की याद आती हे तो दिलो दिमाग में एक अजब सी स्फूर्ति आजाती हे  जेसे पहाडोकी का सीना चीरती हुई सूरज की किरने जब   धरती पर पड़ती हे तब  रातको दिन भर के काम काज से थके  लोग अपने अपने घरो में और पशु पक्सी  भी मीठी मीठी  नींद की चद्दर ओढ्के  सो जाने वाले सभी निशाचर प्राणी और मनुष्य इन सूरज की किरणों से   ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव करते हे और सुनहरी सुबह में ज़ाकल के बिंदु आँखों को ठंडक देता हे और नया जोम नयी मस्ती एक ताजगी आ जाती हे वेसे ही वतन की याद मुझे सुकून देती हे।
   ये मेरे प्यारे वतन ये मेरे प्यारे वतन  ये मेरे बिछड़े चमन तुज पे दिल कुरबान तुजपे दिल कुरबान
हर इंसान अपने अपने वतन को चाहता हे हर कोई खुदको चाहता हे और हर इंसान अपनोका प्यार और परिवार की ख़ुशी चाहता हे भला इसमें कुछ नया नहीं हे लेकिन कुछ शब्द गुन  गुना ने से  दिल को सुकून मिलता हे हल्का हल्का सा महेशुश होता हे आप का क्या ख़याल हे ???????????
हसमुख बी गढवी 



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